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Sringaar Darshan Bhaktivinode Asan, Ultadanga 29th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Sringaar Arati Darshan 29th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Sringaar Arati Darshan 29th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Mangal Arati Darshan 29th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Mangal Arati Darshan 29th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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श्रीमद् भगवद्गीता   यथारूप 9.28 परम गुह्य ज्ञान: शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः | संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि || शुभ– शुभ; अशुभ– अशुभ; फलैः– फलों के द्वारा; एवम्– इस प्रकार; मोक्ष्यसे– मुक्त हो जाओगे; कर्म– कर्म के; बन्धनैः– बन्धन से; संन्यास– संन्यास के; योग– योग से; युक्त-आत्मा– मन को स्थिर करके; विमुक्तः– मुक्त हुआ; माम्– मुझे; उपैष्यसी– प्राप्त होगे | इस तरह तुम कर्म के बन्धन तथा इसके शुभाशुभ फलों से मुक्त हो सकोगे | इस संन्यासयोग में अपने चित्त को स्थिर करके तुम मुक्त होकर मेरे पास आ सकोगे | तात्पर्य : गुरु के निर्देशन में कृष्णभावनामृत में रहकर कर्म करने को युक्त कहते हैं | पारिभाषिक शब्द युक्त-वैराग्य है | श्रीरूप गोस्वामी ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है (भक्तिरसामृतसिन्धु २.२५५)— अनासक्तस्य विषयान्यथार्हमुपयुञ्जतः | श्रीरूप गोस्वामी कहते हैं कि जब तक हम इस जगत् में हैं, तब तक हमें कर्म करना पड़ता है, हम कर्म करना बन्द नहीं कर सकते | अतः यदि कर्म करके उसके फल कृष्ण को अर्पित कर दिये जायँ तो वह युक्तवैराग्य कहलाता है | वस्तुतः संन्यास में स्थित होने पर ऐसे कर्मों से चित्त रूपी दर्पण स्वच्छ हो जाता है और कर्ता ज्यों-ज्यों क्रमशः आत्म-साक्षात्कार की ओर प्रगति करता रहता जाता है, त्यों-त्यों परमेश्र्वर के प्रति पूर्णतया समर्पित होता रहता है | अतएव अन्त में वह मुक्त हो जाता है और यह मुक्ति भी विशिष्ट होती है | इस मुक्ति से वह ब्रह्मज्योति में तदाकार नहीं होता, अपितु भगवद्धाम में प्रवेश करता है | यहाँ स्पष्ट उल्लेख है – माम् उपैष्यसी– वह मेरे पास आता है, अर्थात् मेरे धाम वापस आता है | मुक्ति की पाँच विभिन्न अवस्थाएँ हैं और यहाँ स्पष्ट किया गया है कि जो भक्त जीवन भर परमेश्र्वर के निर्देशन में रहता है, वह ऐसी अवस्था को प्राप्त हुआ रहता है, जहाँ से वह शरीर त्यागने के बाद भगवद्धाम जा सकता है और भगवान् की प्रत्यक्ष संगति में रह सकता है | जिस व्यक्ति में अपने जीवन को भगवत्सेवा में रत रखने के अतिरिक्त अन्य कोई रूचि नहीं होती, वही वास्तविक संन्यासी है | ऐसा व्यक्ति भगवान् की परम इच्छा पर आश्रित रहते हुए अपने को उनका नित्य दास मानता है | अतः वह जो कुछ करता है, भगवान् के लाभ के लिए करता है | वह जो कुछ करता है, भगवान् की सेवा करने के लिए करता है | वह सकामकर्मों या वेदवर्णित कर्तव्यों पर ध्यान नहीं देता | सामान्य मनुष्यों के लिए वेदवर्णित कर्तव्यों को सम्पन्न करना अनिवार्य होता है | किन्तु शुद्धभक्त भगवान् की सेवा में पूर्णतया रत होकर भी कभी-कभ
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Sringaar Darshan Bhaktivinode Asan, Ultadanga 28th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Sringaar Arati Darshan 28th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Sringaar Arati Darshan 28th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Mangal Arati Darshan 28th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Mangal Arati Darshan 28th March 2024 ISKCON Kolkata Hare Krishna 🙏🙏🙏🙏🙏 🌻🌹🌸🌼🌷
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Bhagavad Gita As It Is 9.27 यत्करोषि यदश्न‍ासि यज्ज‍ुहोषि ददासि यत् | यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् || भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र! तुम जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो या दान देते हो और जो भी तपस्या करते हो, उसे मुझे अर्पित करते हुए करो | yat karoṣi yad aśnāsi yaj juhoṣi dadāsi yat yat tapasyasi kaunteya tat kuruṣva mad-arpaṇam Translation : Whatever you do, whatever you eat, whatever you offer or give away, and whatever austerities you perform – do that, O son of Kuntī, as an offering to Me. যৎকরোষি যদশ্নাসি যজ্জুহোষি দদাসি যৎ। যত্তপস্যসি কৌন্তেয় তৎকুরুষ্ব মদর্পণম্।।২৭।। অনুবাদঃ হে কৌন্তেয়! তুমি যা অনুষ্ঠান কর, যা আহার কর, যা হোম কর, যা দান কর এবং যে তপস্যা কর, সেই সমস্তই আমাকে সমর্পণ কর। 🙏🌻🌹Hare Krishna🌹🌻🙏
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1 day ago